राजा का चित्र एक चुनौती

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राजा का चित्र एक चुनौती

राजा का चित्र एक चुनौती की कहानी हिंदी में :- बहुत पुरानी बात है कई जंगलों का सुदूर दक्षिण की तरफ सर्वोदय नामक एक राज्य था। सर्वोदय राज्य सुंदर बागों और घरों के कारण काफी आकर्षक लगता था, इस राज्य में जगह-जगह पहाड़, फूलों के बागान और मनमोहक पानी के झरने थे।

सर्वोदय राज्य का राजा हर्ष था वह बहुत पराक्रमी, शूरवीर और साहसी था। उसने कई राज्यों के साथ युद्ध लड़े और उन पर अपनी जीत पाई थी उसके बहादुरी के चर्चे कई कई राज्यों दूर तक थे। राजा हर्ष पराक्रमी और शूरवीर होने के साथ-साथ कला प्रेमी और प्रकृति प्रेमी भी थे इसीलिए उन्होंने राज्यों में कई जगह सुंदर-सुंदर बागान और बगीचे बनवाए थे।

राजा हर्ष को तितलियां बड़ी ही मनमोहक लगती थी इसलिए राजा ने स्वयं अपने महल में भी बहुत बड़ा बगीचा बनवाया हुआ था जहां पर उसने अपने पूर्वजों के चित्र भी लगाए हुए थे जो कि उसे उसके पराक्रमी और साहसी पूर्वजों की विरासत का अहसास करवाते थे। राजा हर्ष रोज शाम सभा खत्म होने के बाद बाग बगीचों में सेर करने अवश्य जाया करते थे।

राजा हर्ष का राज्य सर्वोदय बहुत ही धनवान और सुंदर राज्यों में से एक था इस कारण उस पर समय-समय पर आक्रमण हुआ करते थे। कभी पड़ोसी राज्य और कभी दूर किसी कबीले से आए हुए सैनिक आए दिन सर्वोदय राज्य पर हमला कर दिया करते थे लेकिन राजा हर्ष बहुत ही निडरता से उन सब का सामना करते और उन्हें धूल में मिला दिया करते थे।

ऐसे ही एक दिन एक ही युद्ध में राजा हर्ष घायल हो गए और उनकी एक आंख और एक पैर इस युद्ध में बहुत बुरी तरह जख्मी हुए, जिस कारण वह एक आंख और पैर खराब हो गए। अब राजा हर्ष लंगड़ा कर चलने लगे थे।

इसी तरह दिन पर दिन-दिन बीतते गए और राजा हर्ष कोई दिन बाग में टहलते हुए अपने पूर्वजों के चित्र देखकर यह एहसास हुआ कि वह भी अब बूढ़े हो चले हैं और किसी ना किसी दिन वह भी अपने पूर्वजों की तरह स्वर्ग जाएंगे। अतः उन्हें अपने जीते जी अपना भी एक शानदार चित्र तैयार करवा लेना चाहिए जोकि उनके पूर्वजों की ही भांति उस बाग में उनकी मृत्यु के पश्चात लगाया जाएगा।

लेकिन यह सोचकर वह काफी उदास हो गए, रात का भोजन भी उन्होंने सही से ना किया यह देख कर उनकी पत्नी काफी चिंतित हुई और उन्होंने राजा से पूछा कि उनकी उदासी की वजह क्या है। राजा बिना कुछ कहे ही खाना आधा छोड़ कर उठ कर चले गए। रानी ने फिर थोड़ा सा दबाव देकर राजा से पूछा कि उनके उदासी की वजह क्या है।

तो राजा ने बताया कि वह भी और बूढ़े हो गए हैं और वह अपने जीते जी अपना एक आकर्षक चित्र तैयार करना चाहते हैं जो कि वह बाग में लगा सकें। इस पर रानी ने पूछा कि इसमें चिंता की कौन सी बात है ?

तो राजा ने कहा कि उनकी एक आंख और एक पैर खराब है अगर कोई चित्रकार उनका इस तरह का चित्र बनाएगा तो संभवत आने वाली पीढ़ियों को लगेगा कि राजा हर्ष एक कमजोर और अपंग राजा थे। यह बात सुन अब रानी भी कुछ चिंता में थी, उन्होंने सुझाव दिया कि क्यों ना राजा यह बात अपने सलाहकारों को बताएं संभवतः वही इस बात का कोई उचित हल निकाल सकते हैं।

रानी की बात मान राजा ने अगले दिन सभा में मौजूद अपने सलाहकारों को अपनी चिंता का विषय बताया और कहा कि जो भी उनकी इस चिंता का उचित हल निकालेगा उसे आकर्षक आभूषणों से गौरवान्वित किया जाएगा अर्थात इस परेशानी का हल निकालने वाले को खूब सारे कीमती-कीमती हीरे मोती और जवाहरात दिए जायेंगे।

यह सुन सारे मंत्री गण और सलाहकार सोच में पड़ गए, कोई हल न निकल पाने के कारण सभा रद्द कर दी गई और अगले दिन फिर इसी मुद्दे पर चर्चा के लिए सभा को बुलाया गया। यह बात उसी दिन पूरे राज्य में आग की तरह फैल गई, हर किसी को राजा की समस्या का पता था और बदले में मिलने वाले आकर्षक उपहारों का भी लेकिन किसी के पास भी इस समस्या का कोई हल न था।

अगले दिन कई सारे लोग सभा में एकत्रित हो गए हर कोई यही जानना चाहता था कि इस समस्या का समाधान कैसे होगा। राजा हर्ष सभा में पहुंचे और सभी से पूछा कि क्या कोई मेरी समस्या का हल लेकर आया है कुछ देर के लिए वहां सन्नाटा छा गया कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं था क्योंकि किसी के पास भी राजा की समस्या का कोई हल नहीं था।

लेकिन तभी कोई राजा से बोला “राजाधिराज की जय हो, राजन यह तो कोई भी चिंता की बात नहीं है, मैं बहुत आसानी से आपकी समस्या का समाधान कर सकता हूं”

राजा ने देखा कि वह फरियादी एक 15-16 साल का नवयुवक है, यह देख राजा काफी अचंभित हुए कि इतने विद्वान सलाहकार भी जिस समस्या का हल नहीं निकाल पा रहे हैं उस समस्या का हल एक बच्चे के पास है !

राजा ने उस युवक से पूछा कि “वह इस समस्या का हल कैसे निकाल सकता है ?”

युवक बोला “राजन में एक चित्रकार हूं और मैं अच्छे से समझता हूं कि आपकी समस्या का हल कैसे निकाला जाए बस जैसा-जैसा मैं कहते जाता हूं अब वैसा-वैसा ही करते जाइए।”

राजा ने हमें सर मिलाया और उस युवक ने कहा कि आप के बाग में चलते हैं आप वहां घोड़ा बुला लीजिए। युवक के कहे अनुसार ही राजा ने सारी व्यवस्थाएं करवा दी और युवक ने राजा का चित्र बनाना शुरू किया। इस सब में सुबह से शाम हो चुकी थी और राजा का चित्र तैयार हो चुका था।

युवक ने राजा से कहा कि “राजन, चित्र तैयार हो चुका है और वह चाहता है कि वह इस चित्र सभा में ही सबके सामने आप को दिखाएं”

यह सुन राजा की चिंता थोड़ी सी बढ़ गई कि हो सकता है कि युवक ने चित्र अच्छा न बनाया हो और सजा के डर से वह चाहता है कि वह सभा के सामने ही इस चित्र को दिखाएं ताकि उसे कम से कम सजा मिले लेकिन राजा ने युवक की बात मान ली और उसे सभा में ही चित्र दिखाने को कहा।

सभा में सुबह से ही लोग बैठे हुए थे और वह भी राजा का चित्र देखना चाहते थे जब राजा और वह युवक चित्रकार वहां पहुंचे तो सभी को तो हाल में एक दूसरे से बात करने लगे और तरह-तरह की अटकलें लगाने लगे।

राजा ने अपने राज सिंहासन पर बुद्धिमान होकर युवक से कहा है कि अब तुम यह चित्र सबको दिखा सकते हो। युवक ने चित्र से पर्दा हटाया और उस चित्र को देखकर सभा में मौजूद सभी लोग खुशी से राजा हर्ष की जय-जय कार करने लगे और तालियां बजाने लगे, पूरा सभगार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठ। यह देख राजा हर्ष भी काफी खुश हुए और उन्होंने अपने राज सिंहासन से उठकर उस चित्र को देखा।

राजा ने देखा कि चित्र में राजा को घोड़े के ऊपर बैठा हुआ और तीरंदाजी करता हुआ दिखाया गया है जिसमें उसकी सिर्फ एक आंख खुली हुई और एक बंद दिखाई गई है, उसी आंख को बंद किया गया है जो युद्ध के दौरान खराब हो गई थी और घोड़े की वजह से एक पैर ही नजर आ रहा है।

राजा हर्ष की वीरता की यह सुंदर झलक तस्वीर के माध्यम से प्रस्तुत की गई थी, साथ ही चित्र में राजा हर्ष का प्रिय घोड़ा भी उनके साथ था यह देख राजा हर्षवर्धन बहुत अधिक खुश हुए और वह खुशी-खुशी अब अपना यह चित्र बाग में लगा सकते हैं यह जानकर बहुत शांत और संतुष्ट थे।

राजा हर्ष ने उस युवक से पूछा कि “जब इतने बड़े और विद्वान लोग इस समस्या का हल नहीं निकाल पाए तो तुमने इस समस्या को कैसे हल कर लिया।”

चित्रकार युवक बोला “राजन! समस्या का हल तो संभवतः इनमें से कई लोगों ने निकाला होगा लेकिन वह सफल न होने पर आपके द्वारा दी जाने वाली सजा के भय से चिंतित थे। वह मन ही मन कल्पनाएं करके तरह-तरह की यात्राओं के बारे में सोच कर अपने मन में भय उत्पन्न कर रहे थे और चुनौती का सामना किए बगैर है उससे हार मान गए थे”

राजा अचंभित हो उस युवक की बात सुन रहे थे।

युवक बोलता रहा “राजन! मैं एक चित्रकार हूं और मुझे अपनी कला पर पूर्ण विश्वास था कि मैं आपका एक बेहतरीन चित्र तैयार कर सकता हूं इसलिए मुझे किसी भी प्रकार की सजा का कोई भय नहीं था। इसलिए मैं निडर था और इस चुनौती का सामना करने के लिए यहां चला आया”

लड़के की बात सुनकर राजा को अति प्रसन्नता हुई और राजा ने उस चित्रकार युवक को कई सारा बहुमूल्य खजाना उपहार स्वरूप दिया।

कहानी से शिक्षा

जीवन में ऐसी कोई भी कठिनाई या चुनौती नहीं होती है जिसका सामना न किया जा सके। हर असंभव सी दिखने वाली चीज को संभोग किया जा सकता है अगर हम निडर रहें और सफल ना हो पाने के कारण मिलने वाली असफलताओं के भय से चिंतित ना हों तो हम हर तरह की कठिनाई का सामना बहुत ही आसानी से कर सकते हैं।

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