कर्म से बढ़कर कुछ नहीं – हिंदी कहानी ( Karam Se Badhkar Kuch Nahi – Hindi Kahani )

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कर्म से बढ़कर कुछ नहीं - हिंदी कहानी ( Karam Se Badhkar Kuch Nahi - Hindi Kahani )

कर्म से बढ़कर कुछ नहीं – हिंदी कहानी ( Karam Se Badhkar Kuch Nahi – Hindi Kahani ) : एक समय की बात है एक सिद्ध महात्मा थे जिनकी सिद्धि और ज्ञान दूर-दूर तक प्रख्यात थी। इनके प्रवचन सुनने लोग दूर-दूर से आया करते थे। उन महात्मा का एक अनन्य भक्त था जिसने महात्मा से विनती कर कहा की मैं अपने गांव में आपका प्रवचन करवाना चाहता हूँ इसलिए आपसे विनती है कि आप मेरे गाँव चलें और आपके प्रवचन की सब तैयारी मैं कर लूंगा।

भक्तों के अनुरोध पर महात्मा निरंतर अलग-अलग स्थानों पर प्रवचन करने जाते रहते थे इसलिए महात्मा ने बिना संकोच या दुविधा के गांव जाकर प्रवचन के लिए हाँ कर दी और एक हफ्ते बाद प्रवचन का प्रयोजन करने के लिए तिथि निर्धारित कर दी। भक्त ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और वहां से जाने की अनुमति ले कर चला गया।

गांव आकर भक्त जोर-जोर से आयोजन करने लगा और सब गांव वालों को प्रवचन के आयोजन के बारे में बताने लगा। सबको घर जाकर हर किसी को हर हाल में प्रवचन में आना है यह बोलकर उसने प्रवचन के आयोजन के बारे में सबको बता दिया ताकि सब महात्मा का प्रवचन सुनने पहुँच सकें।

जल्द ही वह दिन आया जिस दिन प्रवचन होना था महात्मा जी पधारे और उनका भव्य स्वागत हुआ भक्त एवं गांव वालों ने आदर और सत्कार के साथ महात्मा जी का स्वागत किया। यह देख महात्मा जी काफी प्रसन्न हुए और प्रवचन शुरू हुआ। प्रवचन शुरू होने के साथ ही महात्मा जी ने देखा की जिस भक्त ने प्रवचन का आयोजन किया है वो खुद ही प्रवचन सुनने के लिए वहां उपलब्ध नहीं है।

धीरे-धीरे गांव वाले भी उस भक्त को ढूढनें लगे जिसने आयोजन किया था। कुछ गांव वाले तो इस बात से काफी नाखुश और नाराज भी हुए की उन्हें हर हाल में आना है बोलकर उन्हें तो बुला लिया है पर वह आयोजन करके खुद ही गायब है।

शाम हुई उस दिन का आयोजन समाप्त हो गया महात्मा आराम करने कक्ष में चले गए पर वो खुद भी थोड़े से चिंतित थे कि जिस भक्त ने आयोजन किया है वह खुद ही प्रवचन में मौजूद नहीं है यह तो बिलकुल भी ठीक बात नहीं है।

थोड़ी देर में भक्त वापिस आ गया और महात्मा से प्रणाम कर प्रवचन न सुन पाने के लिए क्षमा मांगी। महात्मा जी ने प्रवचन आयोजित करके खुद न पहुंचपाने का कारण पूछा तो भक्त ने बताया कि आपके प्रवचन से कुछ समय पहले ही मुझे समाचार मिला था की मेरे एक मित्र का स्वास्थ्य खराब है और उसे मदद की आवश्यकता है इसलिए मैं उसके पास गया हुआ था ताकि उसे चिकित्सक के पास ले जा सकूँ।

उसे चिकित्सक के वहां ले जाने और उपचार कराने में ही पूरा दिन लग गया। महात्मा जी ने पूछा की अब आपके मित्र का स्वास्थ्य कैसा है तो भक्त ने जवाब दिया की अब उसके मित्र का स्वास्थ्य अच्छा है।

अगला दिन हुआ प्रवचन शुरू होने वाला था कुछ गांव वाले महत्मा जी के पास पहुंचे और उनसे पूछा की कल आपका भक्त जिसने ये आयोजन किया है वह खुद ही प्रवचन सुनने नहीं पहुंचा है यह तो आपका अपमान है उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। बात सुन महात्मा जी ने कहा की आपका कथन अपनी जगह सही है इस बात का जवाब मैं प्रवचन के समय दूंगा।

प्रवचन शुरू होते ही महात्मा जी ने आयोजन करने वाले भक्त के प्रवचन में उपस्थित न होने का कारण सबको बताया और कहा की मेरे इस भक्त ने मेरे प्रवचन सिर्फ सुने ही नहीं हैं बल्कि उन्हें अच्छे से आत्मसात भी किया है इसलिए उसने मेरे प्रवचन से बढ़कर महत्व अपने कर्म को दिया। उसका कर्म था की वह मुसीबत में अपने मित्र की सहायता करे और उसने ऐसा ही किया है।

मेरे प्रवचन तो वह किसी और के माध्यम से या अगली बार भी सुन सकता है लेकिन विपत्ति के दौरान अपने मित्र की सहयता न करना सही न होता इसलिए उसने अपने कर्म को प्राथमिकता दे एक अच्छे भक्त के साथ-साथ इंसान होने का परिचय दिया है। इसलिए सदैव अपने बुद्धि विवेक का प्रयोग करें और सही बात का चुनाव करें।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कर्म से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता है इसलिए अपने बुद्धि विवेक के अनुसार सही कर्म का चुनाव करें और कर्म को ही तरजीह दें।

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