राजा का गुस्सा और चालाक लुटेरा

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राजा का गुस्सा और चालाक लुटेरा

राजा का गुस्सा और चालाक लुटेरा की कहानी हिंदी में :- मधुनगर नामक एक राज्य था इस राज्य के राजा इंद्रजीत थे। राजा इन्द्रजीत की एक रानी थी, जिससे राजा बहुत प्रेम करते थे। राजा इन्द्रजीत बहुत गुस्से वाले व्यक्ति थे, उन्हें हर छोटी-छोटी बातों पर इतना गुस्सा आता था की छोटी सी बात पर भी बड़ी सजा सुना देते थे।

राजा इन्द्र जीत का एक बहुत बड़ा मंत्रिमंडल था परन्तु मंत्रिमंडल में केवल एक मंत्री ही राजा इन्द्र जीत को बहुत प्रिय था। राजा इन्द्र जीत के प्रिय मंत्री का नाम रामा था। राजा के मंत्रिमंडल में सबसे समझदार मंत्री रामा ही था, केवल रामा ही राजा इन्द्र जीत के गुस्से को शान्त कर सकता था।

एक दिन की बात है, राजा इन्द्र जीत अपनी रानी के साथ पड़ोसी राज्य में जा रहे थे, महाराजा इन्द्र जीत ने रानी से शीघ्र तैयार होने के लिए कहा परन्तु रानी को थोड़ी देर हो गई तो राजा इन्द्र जीत ने गुस्से में रानी को महल से बाहर निकाल दिया, रानी ने बहुत माफ़ी माँगी परन्तु राजा इन्द्र जीत ने अपनी रानी को माफ़ नहीं किया और रानी के पिता के घर भेज दिया।

राजा इन्द्र जीत का गुस्सा हर दिन बढ़ता जा रहा था, एक दिन राजा इन्द्र जीत अपने महल के बागान में घूम रहे थे। बागान में माली पौधों को पानी दे रहा था अचानक गलती से माली ने पौधों में पानी देते हुए गलती से राजा इन्द्र जीत पर थोड़ा पानी डाल दिया, राजा इन्द्र जीत ने उस माली को हजार कोड़े मारने का आदेश दे दिया।

राजा इन्द्र जीत की प्रजा इन सब अत्याचारों से बहुत परेशान हो गई थी। राजा इन्द्र जीत हर छोटी बात पर बहुत कड़ी सजा देते थे राजा इन्द्र जीत की प्रजा राजा से इतनी परेशान हो गई कि प्रजा के बहुत से लोग दूसरे राज्य में पलायन करने लगे।

राजा इन्द्र जीत के गुस्से से पूरा राज्य राजा के विरुद्ध हो गया, राज्य में आन्तरिक अशांति फेल गई जिसका फायदा बाहरी राज्य वाले उठाने लगे दिन प्रतिदिन आक्रमण बढ़ते जा रहे थे, अब हर दूसरा राज्य मधुनगर पर आक्रमण करने की योजना बनाने लगा।

मधुनगर से कुछ दूर एक कलिंग नामक राज्य था जहाँ की तरफ अब मधुनगर के लोग पलायन करने लगे थे, धीरे-धीरे मधुनगर की स्थिति के बारे में कलिंग राज्य में बात फैल गई। कलिंग राज्य में एक चालाक लुटेरा रहता था जैसे ही लुटेरे को पता चला मधुनगर के राजा छोटी-छोटी बातों पर बहुत गुस्सा हो जाते हैं तो लुटेरे ने एक चाल चलने की सोची।

कुछ दिनों बाद लुटेरा मधुनगर की तरफ चले गया अब लुटेरा राजा के महल के आस-पास घूमता और राजा एवं उनके मंत्रिमंडल पर नजर रखता। रोज की तरह लुटेरा महल के पास घूम रहा था तभी लुटेरे ने देखा राजा इन्द्रजीत ने अपने अंगरक्षक को बुलाया, परन्तु अंगरक्षक उस समय राजा के ही किसी कार्य से महल से बाहर गया था और राजा स्वयं इस बात को भूल गए।

जब कुछ देर बाद राजा इन्द्रजीत का अंगरक्षक आया तो राजा इन्द्रजीत बहुत क्रोधित हो गए और अंग रक्षक को 1000 कोड़े लगाने की सजा सुनाई और अपने अंगरक्षक की कोई भी बात ना सुनकर, अंगरक्षक को उसके पद से हटा कर महल से बाहर भी निकल दिया, बाहर से लुटेरा यह सब देख रहा था।

कुछ समय बाद राजा इन्द्रजीत ने अपने नए अंग रक्षक को चुनने के लिए युद्ध प्रतियोगिता रखी जिसमें वह लुटेरा भी आया और लूटेरे ने प्रतियोगिता जीत ली। लुटेरा बहुत चालाक था, लुटेरे ने बहुत दिन से राजा इन्द्रजीत पर नजर रखी थी। इसलिए लुटेरे को सब पता था राजा किन-किन बातों में गुस्सा हो सकता था तो लुटेरा हर चीज बहुत सोचकर करता था।

लुटेरे ने बहुत जल्दी ही राजा इन्द्रजीत का भरोसा जीत लिया, अब राजा अपने हर फैसले को लुटेरे के अनुसार ही लेने लग गए। यह सब देखकर राजा के प्रिय मंत्री रामा ने राजा इन्द्रजीत को उस नए अंग रक्षक की बात पर इतना भरोसा ना करने को कहा परन्तु राजा अब सिर्फ अपने अंग रक्षक की बात ही सुनता था इसलिए राजा इन्द्रजीत ने अपने नए अंग रक्षक के कहने पर अपने प्रिय मंत्री रामा को ही महल से निकाल दिया।

धीरे-धीरे उस लुटेरे ने राजा इन्द्रजीत की सेना में से हर ताकतवर सिपाही को राजा इन्द्रजीत की नजरों में गलत साबित कर सेना से बाहर कर दिया।

एक दिन राजा इन्द्रजीत अपने कक्ष में सो रहे थे और वह लुटेरा राजा के कक्ष में गया और जैसे ही वह राजा इन्द्रजीत पर हमला करने वाला ही था, उसी वक़्त राजा इन्द्रजीत का प्रिय मंत्री राजा के कक्ष में आ गया और राजा के प्रिय मंत्री रामा ने उस लुटेरे को राजा की हत्या करने से रोक दिया।

राजा इन्द्रजीत ने अपने प्रिय मंत्री रामा से पूछा – “तुम इस समय यहाँ क्या कर रहे हो ? तुमको कैसे पता चला कि मेरा अंग रक्षक मुझ पर हमला करने वाला है?”

तब राजा का प्रिय मंत्री रामा बोला – “महाराज जब से यह नया अंग रक्षक आया था तब से ही मुझे इसकी हरकतों पर संदेह हुआ और मैंने इस पर नजर रखी तब मैंने देखा यह समान खुद चुराता था और इल्जाम सिपाहियों पर लगाता था। जिससे आप उनको निकाल दें और वह मौका पड़ने पर आप पर हमला कर सके”

“इन हरकतों को देखकर मैंने आस पास के लोगों से इसके बारे में पता करवाया तब मुझे पता चला यह कलिंग राज्य का एक शातिर लुटेरा है परन्तु इस लुटेरे ने आपके गुस्से को आपके खिलाफ ही इस्तेमाल किया और आपको अपनी बातों में फंसा लिया, जिस कारण आप इस लुटेरे की चाल समझ नहीं पा रहे थे इसलिए मैंने सही समय का इंतजार किया क्योंकि मैं जानता था, इस लुटेरे की बहुत बड़ी योजना है तभी लुटेरे ने धीरे-धीरे आपके सभी ताकतवर सैनिकों और मुझे महल से बाहर निकलवा दिया ताकि वह आपका वध करके आपका सिंहासन हड़प सके।”

राजा इन्द्रजीत ने उस लुटेरे को उम्र कैद की सजा सुनाई और अपने प्रिय मंत्री रामा को पुरस्कृत किया एवं अपनी प्रजा से कभी ज्यादा गुस्सा ना करने की बात कही और सभी से माफ़ी भी मांगी। साथ ही राजा सह सम्मान अपनी पत्नी को वापिस ले आये और गुस्से में आकर पदों से हटाए हुए अपने मंत्रियों, सैनिकों एवं कर्मचारियों को फिर से पदों पर नियुक्त किया।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अति किसी भी चीज़ की कभी अच्छी नहीं होती है, यदि हम किसी भी चीज़ की अति करते हैं तो वह हमारी कमजोरी बन जाती है और वही कमी कोई भी हमारे खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है।

साथ ही हमें कभी भी अपनी कमजोरी को किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए वरना सब हमारी कमजोरी को हमारे विरुद्ध ही इस्तेमाल करेंगे जिस तरह राजा के गुस्से का फायदा लुटेरे ने उठाया।

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