मेहनत परिश्रम और माधव की नासमझी

9 Min Read
मेहनत परिश्रम और माधव की नासमझी

मेहनत परिश्रम और माधव की नासमझी की कहानी हिंदी में :- कई समय पुरानी बात है सुदूर दक्षिण में रंगपट्ट नामक गांव में रामानंद नामक एक व्यवसायी रहता था। वह औषधियों जड़ी बूटियों और फूलों का व्यवसाय किया करता था साथ ही बहुत बहुमूल्य चंदन की लकड़ी भी बेचा करता था।

रामानंद के पास कई सारे बाग और बगीचे थे जिनका ख्याल वह स्वयं ही रखा करता था। अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए वह कई सारे पेड़ पौधे और जड़ी बूटियां दूर-दूर से लाया करता और अपने बाग में लगाया करता था ताकि वह उन्हें समय आने पर बेच सके लेकिन इस वजह से उसे कई दिन अपने गांव से दूर रहना पड़ता था जिस कारण उसके कई पौधे मुरझा जाया करते थे जिसका उसे काफी दुख होता था।

रामानंद ने अपने बाग और बगीचों से बहुमूल्य पेड़ पौधे और औषधियां बेचकर काफी धन अर्जित किया था यह देख गांव के कुछ लोग रामानंद से काफी चिढ़ा करते थे और रामानंद के गांव में ना होने पर उसके बाग और बगीचों को हानि पहुंचाया करते थे। जिससे रामानंद का काफी नुकसान हुआ करता था, इस कारण रामानंद ने बाग बगीचों की देखभाल के लिए कई सारे मजदूर रखे।

लेकिन कोई भी उसके बाग का ख्याल उसकी तरह नहीं रख पाता था इसलिए कोई भी मजदूर उसके यहां ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाता था। एक दिन रामानंद अपने जड़ी बूटियों का व्यवसाय करने के लिए कहीं दूर किसी गांव में गया हुआ था वापस लौटते समय उसे एक पेड़ के नीचे एक व्यक्ति रोता हुआ नजर आया।

रामानंद से यह देखा ना गया और उसने उस व्यक्ति से पूछा कि भाई क्या बात है आखिर तुम क्यों रो रहे हो ? क्या मैं किसी प्रकार तुम्हारी कोई सहायता कर सकता हूं ?

यह सुन वह व्यक्ति बोला कि उसका नाम माधव है, इस दुनिया में उसका कोई नहीं है और वह काफी असहाय है, उसके पास कोई कार्य भी नहीं है जिसको करके वह अपना भरण-पोषण कर सके इसलिए वह दुखी है और रो रहा है।

यह सुन रामानंद ने कहा कि अगर यही तुम्हारी समस्या है तो इसका समाधान मेरे पास है मेरे कई बार और बगीचे हैं जिनका ध्यान रखने के लिए मुझे एक व्यक्ति की आवश्यकता है अगर तुम यह कार्य करना चाहते हो तो मेरे साथ चल सकते हो बदले में मैं तुम्हें रहने की जगह, खाने को भोजन और कुछ धन दे सकता हूं।

यह बात सुनकर रोता हुआ व्यक्ति खुश हुआ और बोला अवश्य, मैं आपके यहां चलकर किसी प्रकार का कार्य करने के लिए तैयार हूं।

रामानंद माधव को अपने साथ अपने गांव रंगपट्ट ले आए और उसको बाग बगीचों का सारा काम समझा दिया। अगले ही दिन रामानंद जब उठे तो उन्होंने देखा कि माधव ने उनके उठने से पहले ही पेड़ पौधों को पानी दे दिया है, पेड़ पौधों के आसपास होगी भी अतिरिक्त घास को भी उसने काट दिया है।

माधव का यह कार्य देख रामानंद काफी खुश हुए, रामानंद ने पाया कि माधव काफी मेहनती और ईमानदार है वह अपना काम समय से पहले ही कर देता है। रामानंद को कभी माधव से कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती है वह बिना कहे ही बाग बगीचों के सारे काम कर चुका होता है।

माधव को पाकर रामानंद काफी खुश थे, रामानंद ने पाया कि माधव उनसे भी ज्यादा अच्छे तरीके से पेड़ पौधों का ख्याल रखता है। यह सोच रामानंद ने अपने बगीचे पूर्णतः माधव के भरोसे छोड़ना शुरू कर दिया और व्यवसाय करने दूर के इलाकों में जाने लगे।

शुरुआत में तो रामानंद को अपने बाग बगीचों की वजह से घबराहट रहती थी कि आखिर माधव बिना उसकी मौजूदगी के सही से कार्य कर रहा होगा कि नहीं, लेकिन रामानंद ने पाया कि माधव बहुत ही ईमानदार से रामानंद की गैरमौजूदगी में भी बाग बगीचों का ख्याल रखता है। इसलिए अब रामानंद बिना किसी समस्या के दूर दूर तक जाकर अपना व्यवसाय बढ़ाने लगे और उन्होंने बहुत ही कम समय में बहुत सारा धन अर्जित कर लिया।

समय बीत गया और वह समय भी आया जब रामानंद की आयु ढल चुकी थी। रामानंद को एहसास हुआ कि अब उनके पास ज्यादा समय नहीं बचा है अतः वह अपने नौकर माधव के लिए कुछ ना कुछ अवश्य करके जाएं ताकि माधव को उसकी मेहनत और ईमानदारी के लिए उपहार मिल सके।

यह सोच रामानंद ने माधव को बुलाया और अपने बहुमूल्य चंदन के पेड़ों का बगीचा माधव को सौंप दिया। साथ ही रामानंद ने कहा कि माधव अब तुम्हें मेरे किसी भी बगीचे में काले करने की आवश्यकता नहीं है तुमने अपनी जिंदगी में काफी कार्य किया है अतः मैं चाहता हूं कि अब तुम इसी चंदन के बगीचे में रहो और इसे ही संभालो।

माधव यह जान खुश था कि उसकी मेहनत रंग लाई और उसके मालिक ने उपहार स्वरूप उसे एक बगीचा दिया है, माधव अपने मालिक की बात मानकर अब उसी चंदन के बगीचे में रहने लगा।

कई दिन बीत गए मालिक रामानंद ने माधव को नहीं देखा, रामानंद ने सोचा कि निश्चित ही माधव चंदन का व्यवसाय करने कहीं दूर गया होगा जिस कारण हम मिलने नहीं आ पाया है और अब माधव पहले से ज्यादा सुखी और धनवान है यह सोच रामानंद को एक शांति का अहसास हुआ कि उन्होंने माधव को उसकी मेहनत के लिए अच्छा उपहार दिया है।

फिर रामानंद ने सोचा कि अगर माधव उनके पास मिलने नहीं आ पा रहा है तो क्यों ना वह स्वयं ही माधव से मिल आएं। रामानंद माधव से मिलने चंदन के बगीचे में चले गए तो उन्होंने पाया कि वहां चंदन का कोई भी पेड़ नहीं बचा है यह देख रामानंद काफी आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने यह भी देखा कि माधव एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर वहां रह रहा है।

रामानंद को वहां देखकर माधव काफी प्रसन्न हुआ लेकिन रामानंद काफी आश्चर्यचकित थे। रामानंद ने माधव से पूछा कि क्या तुमने यहां मौजूद चंदन के सभी पेड़ बेच दिए हैं और अगर तुमने सारे पेड़ बीच ही दिए हैं तब भी तुम इतनी दयनीय स्थिति में यहां क्यों हो ?

माधव ने बताया कि मालिक यहां रहने के लिए और इस झोपड़ी को बनाने के लिए मैंने चंदन के पेड़ काट दिए जिसे मैंने यह झोपड़ी तैयार की है और खाना बनाने के लिए बचे हुए कुछ चंदन के पेड़ों का इस्तेमाल किया।

माधव की आवाज सुन रामानंद को काफी धक्का लगा वह झल्लाते हुए बोले नासमझ माधव तेरे को इतनी भी अक्ल नहीं है कि इतने बहुमूल्य चंदन को जलाया नहीं जाता है। तूने बेशकीमती चंदन खाना बनाने के लिए जला दिया, तू जानता भी है कि चंदन को बेचकर तो कितना धनवान बन सकता था ?

रामानंद की यह बात सुन माधव के होश उड़ गए और वह सर पकड़ कर जमीन पर बैठ कर रोने लगा। उसे एहसास हो गया था कि मेहनत और ईमानदारी की वजह से वह धनवान बना था लेकिन उसकी नासमझी और भूल की वजह से वह धनवान से रंक (गरीब) बन चुका था।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि चंदन की तरह ही बहुमूल्य अवसर अक्सर ही हमारे आसपास होते हैं लेकिन हम अपनी मूर्खता या ना समझी की वजह से उनको पहचान नहीं पाते हैं अतः हमें हर अवसर को अच्छी नजर से देखना चाहिए और कामयाबी के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।

पढ़ें – ज्ञानेंद्र की आशा की किरण की कहानी

Share this Article