सकारात्मकता से ही निकलता है हर समस्या का समाधान

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सकारात्मकता से ही निकलता है हर समस्या का समाधान

सकारात्मकता से ही निकलता है हर समस्या का समाधान की कहानी हिंदी में :- सुदूर पहाड़ में एक सुंदर सा पर्यटक स्थल था मटकोट, मटकोट अपनी हसीन वादियों के लिए काफी प्रख्यात था। मटकोट से बर्फ से ढके पहाड़ों की सुन्दर सी छटा नजर आया करती थी जो हर किसी को मोह लिया करती थी। इस हसीन मौसम, वादियों और अद्भुत छटाओं को देखने कई सैलानी मटकोट आया करते थे।

मटकोट में ही एक सराय थी जिसमें देव नाम का एक युवक नौकरी किया करता था। देव के माता पिता नहीं थे और देव जन्म से ही गूंगा एवं बहरा था, जिस कारण देव के होटल के सभी साथी व मालिक उसके प्रति सहानुभूति का भाव रखते थे। कई तकलीफें होने के बाद भी देव एक आशावादी और अच्छी सोच वाला व्यक्ति था, जिंदगी में लाख दुःख होने के बाद भी वह खुश रहने व दूसरों को खुश करने में ही रहता था, बोल-सुन न पाने के बाद भी इशारों और लोगों के हाव भाव से वह लोगों की काफी बात समझ जाया करता था।

हर रोज की तरह ही देव सुबह सात बजे होटल में पहुँचा, गर्मियों का समय होने के कारण आज सराय में बहुत से लोग आये हुए थे, जिस वजह से काम का बोझ कुछ ज्यादा था। काम करते-करते देव को दोपहर का खाना खाने की याद भी न रही, जब उसे भूख महसूस हुई और उसने सोचा की भोजन कर लिया जाये तभी होटल के मालिक ने देव को एक पर्ची पकड़ा दी।

पर्ची पर लिखा था कि देव को अभी तुरंत नजदीकी पोस्ट ऑफिस में जाना है कल सुबह 8 बजे से पहले-पहले एक चिट्ठी पोस्ट करके आनी है क्योंकि पूरे हफ्ते की पोस्ट हर सोमवार को ही जाया करती थीं और अगर पोस्ट कल निकल गयी तो फिर अगले हफ्ते ही पोस्ट जा पायेगी।

अब क्योंकि पोस्ट ऑफिस मटकोट से काफी दूर था और सुबह 8 बजे से पहले चिट्ठी पहुंचना जरुरी था इसलिए देव तुरंत ही पोस्ट ऑफिस जाने के लिए पैदल ही निकल गया और अपने खाने का डिब्बा साथ ले लिया, उसने सोचा कि जहाँ भी वह रात में शरण लेगा वहां वह यही खाना खा लेगा।

शाम ढलने से कुछ देर पहले ही तो देव निकला था, तो थोड़े ही देर में अंधेरा सा होने लगा लेकिन देव तेज-तेज क़दमों से चलता ही रहा। कुछ ही देर में हल्की-हल्की सी बारिश भी होने लगी, देव ने सोचा कि इससे पहले की बारिश तेज हो जाये कहीं न कहीं आश्रय ले लेना चाहिए और अब पोस्ट ऑफिस भी ज्यादा दूर नहीं है तो वह सुबह सही समय पर पोस्ट ऑफिस पहुँच ही जायेगा अतः कहीं रुकना ही उचित है।

तभी देव को दूर एक रौशनी सी नजर आयी, देव ने उस रौशनी की तरफ दौड़ लगा दी, वह रोशनी एक झोपड़ी से आ रही थी। देव झोंपडी के पास पहुंचा और इशारों ही इशारों में झोंपडी में रहने वाले व्यक्ति से वहां रात में रुकने की इजाजत मांगी। बारिश और देव की असहाय स्थिति देख कर उस झोंपडी में रहने वाले व्यक्ति ने देव को रात वहीं गुजारने की अनुमति दे दी।

झोंपडी के अंदर देव ने देखा कि दो बच्चे और एक महिला भी हैं जो कि काफी कमजोर से हैं उसने यह भी देखा कि रात में खाने के लिए उनके पास पर्याप्त खाना भी नहीं है। यह देख देव का दिल पसीज गया और उसने अपने खाने का डिब्बा उन बच्चों को दे दिया और इशारे में कहा की वह कुछ देर पहले ही इसमें से भोजन कर चुका है और यह खाना अतिरिक्त बचा है अतः बच्चे खाना खा सकते हैं।

बच्चे खाना पाकर काफी खुश हुए लेकिन देव को आज रात भूके पेट ही सोना पड़ा न तो वह दोपहर में खाना खा पाया था न ही रात में लेकिन फिर भी देव उदास या निराश नहीं था वह मन से काफी खुश और संतुष्ट था कि वह किसी की मदद कर पाया। सुबह जल्दी ही देव सभी से आज्ञा ले पोस्ट ऑफिस की तरफ चल दिया और साप्ताहिक पोस्ट जाने से पहले ही उसने चिट्ठी पहुँचा दी।

अब देव चिंता मुक्त था कि अपने मालिक का काम उसने समय पर व ईमानदारी से किया है अतः वह अब आराम से घर जा सकता है। वह सुन्दर-सुन्दर प्राकृतिक नज़ारे देखते हुए, मन ही मन खुश होते हुए जा रहा था कि तभी अचानक उसका पैर फिसल गया और वह लुढ़कता हुआ गहरी सी खाई में जा गिरा और बेहोश हो गया।

पूरे दिन वह बेहोशी में ही वहां पड़ा रहा जब उसे होश आया तो रात हो चुकी थी, देव काफी दर्द में था और दो दिनों से भूखा भी था। उसे काफी चोट आयी थी जिस कारण वह काफी पीड़ा में था, अँधेरा भी हो चूका था तो उसे कुछ नजर भी नहीं आ रहा था। चारों तरफ ही पहाड़ काफी ऊँचा था और कहीं से भी उस खाई से निकलने का रास्ता नजर नहीं आ रहा था।

देव अपने आप को काफी असहाय महसूस कर रहा था, जन्म से ही मूक होने के कारण वह किसी को आवाज भी नहीं लगा सकता था। घना जंगल होने के कारण उसे जंगली जानवरों का डर भी सता रहा था, देव को लगा कि आज तो उसका अंत निश्चित है कोई भी उसे इस खाई में देखने तो नहीं आएगा और न ही वह खुद ऐसी खाई से ऊपर जा पायेगा।

लाख मुसीबतों के बाद भी हमेशा जिंदादिल और खुश रहने वाला देव भी आज काफी निराशा और नकारात्मक भावों से भर चूका था। खाई से ऊपर स्थित पेड़ों के हल्के से हिलने पर भी उसे जंगली जानवर के आने का अंदेशा होता और देव को उसकी मौत नजर आ रही थी, देव के लिए यह रात कुछ ज्यादा ही लम्बी और भयावह थी। देव दर्द और भय से कांप रहा था, असहनीय दर्द और भूख के कारण वह बेसुध हो गया।

सुबह हुई और चिड़ियों कि चह-चहाहट के साथ ही देव की नींद खुली, डरावनी रात कट चुकी थी और देव अभी भी सुरक्षित था यह सोच देव ने भगवान का शुक्रिया किया और वहां से सुरक्षित बाहर निकलने के लिए भगवान उसे शक्ति दें, ऐसी गुहार भी लगाई। जैसे-तैसे देव खड़ा हुआ और खाई से निकलने का प्रयास करने लगा लेकिन जैसे ही वो थोड़ा ऊपर चढ़ता फिसल कर निचे आ जाता, काफी प्रयासों के बाद भी देव को सफलता नहीं मिली।

तभी देव को एक बांस की लकड़ी नजर आयी उसने उसे उठाया और दो टुकड़े कर दिए, फिर उसने उन दो बांसों कि लकड़ी को एक दूसरे में मारना शुरू कर दिया, जिससे बहुत तेज आवाज आने लगी, देव तो सुन नहीं सकता था लेकिन वह जोर-जोर से काफी देर तक दोनों बांस की लकड़ियों को एक दूसरे में मार-मारकर आवाज निकालते रहा ताकि किसी का तो ध्यान इस आवाज की तरफ आकर्षित होगा।

देव का अंदाजा सही निकला कुछ ही देर में खाई के ऊपर देव जहाँ काम करता था उस सराय का मालिक, उसके सहकर्मी और उसके कुछ गांव वाले नजर आये। देव समझ गया कि संभवतः वह उसे ढूढ़तें हुए यहाँ पहुंचे हैं, उन सबको वहां देख देव की जान में जान आयी और उसके अंदर से यह विचार आने लगा कि अब तो वह बच ही जायेगा लेकिन खाई काफी गहरी थी और उसके मालिक या गांव वालों के पास कोई रस्सी भी नहीं थी।

उसके मालिक और गांव वाले आपस में ही बात करने लगे, देव काफी देर तक उनको यह सब करते देख रहा था देव को लगा कि वह सब बोल रहे हैं कि ऊपर आने का प्रयास करो और हम जल्दी ही रस्सी ला रहे हैं। देव ने बिना समय गंवाते हुए चढ़ना शुरू कर दिया और कुछ ही देर में वह ऊपर आ चुका था।

यह सब देख वह सभी हैरान थे तभी मालिक ने अपनी जेब से डायरी निकाली और लिखा कि “चलो अच्छा है कि तुम सही सलामत ऊपर आ गए लेकिन तुमने यह असंभव कार्य कैसे कर दिखाया ? हम सब तुमसे कितना मना कर रहे थे कि ऊपर मत चढ़ो तुम गिर जाओगे और तुम्हें चोट भी आ सकती है लेकिन तुमने हमारी एक न सुनी और तुम ऊपर चढ़ ही आये।”

यह पढ़ देव ने लिखा कि “आज अच्छा ही हुआ कि मैं सुन नहीं सकता हूँ क्योंकि आज अगर मैं सुन पाता तो आप सबकी नकारात्मक बातें सुनकर कभी यह असंभव चढ़ाई चढ़ ही नहीं पाता बल्कि आप सबको बोलता देख मैं तो सोच रहा था कि आप सब मुझे ऊपर चढ़ने के लिए ही प्रेरित कर रहे हो तभी तो मैं बिना डरे ऊपर चढ़ आया।”

फिर मालिक ने लिखा कि “क्या तुम्हें वाकई इतनी असंभव चढ़ाई चढ़ने में मृत्यु का भय नहीं लगा ?”

देव ने लिखा “मृत्यु का भय तो मेरे दिमाग से कल रात ही निकल चूका था कल रात में जीते जी कई बार मरा और अब इससे बुरा मेरे साथ कुछ नहीं हो सकता है यह सोचकर मेरे अंदर से मृत्यु का भय निकल गया और आप लोगों के यहाँ पहुँचते ही मैं समझ गया कि अब मेरे साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा और मैं ऊपर चढ़ आया”

देव के मालिक ने अचंभित आँखों से देव की तरफ देखा और लिखा कि “आज तुम्हारे सकारात्मक विचारों ने ही तुम्हें बचा लिया नहीं तो हम सब तो तुम्हें इस हालत में देख कर हिम्मत हार चुके थे”

फिर सभी वहां से वापिस अपने गांव मटकोट चले गए और देव की भयावह परिस्थिति में भी सकारात्मक रहने की कहानी आस पास के कई गांवों में प्रख्यात हो गयी।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कठिन से कठिन परिस्थिति में हम सकारात्मक रहें और डटकर हर समस्या का सामना सकारात्मक सोच के साथ करें तो कठिन से कठिन समस्या को भी आसानी से हल किया जा सकता है।

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