सत्य और ईमानदारी की जीत – हिंदी कहानी

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सत्य और ईमानदारी की जीत - हिंदी कहानी

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सत्य और ईमानदारी की जीत – प्रेरणादायक हिंदी कहानी

एक बार की बात है सुदूर दक्षिण की तरफ तिरुपल्ली नामक राज्य में जयवर्धन नाम का राजा राज किया करता था। जयवर्धन न्यायप्रिय और न्यायसंगत राजा था और सत्य बोलने वालों को पसंद करता था और झूठ बोलने वालों को दंडित किया करता था।

एक दिन राजा जयवर्धन को अपना नया सेनापति चुनना था क्योंकि पुराना सेनापति बूढ़ा हो चूका था और अपना कार्यकाल पूरा कर चूका था। राजा जयवर्धन ने कुछ वीर और निडर लोगों को चुना और यह सोचने लगे की इनमें से किसे अगला सेनापति चुना जाये।

राजा जयवर्धन ने अपने सलाहकार चिरंजीव से इस बात पर विचार विमर्श किया और कहा की मैं जानता हूँ यह सभी निडर, बहादुर और देश प्रेमी हैं जो कि जरुरत पड़ने पर इस राज्य के लिए अपने प्राण न्योछावर करने में हिचकिचायेंगे नहीं लेकिन मैं यह जानना चाहता हूँ कि इन सब में ऐसा कौन है जो ईमानदार हो, जो बिना मुझसे डरे अपनी बात रखे और सिर्फ मुझे खुश करने के लिए मुझसे झूठ न बोले।

अगर वह झूठ बोलेगा या ईमानदार नहीं होगा तो यह हमारे राज्य के लिए काफी घातक हो सकता है अगर मैं राजा के अपने फर्ज से कभी चुकूँ या हमपर किसी ने आक्रमण किया हो और हमारी शक्ति और कमजोरी के बारे में सोचकर हमारा नया सेनापति मेरे क्रोध के कारण सही जानकरी नहीं दे तो यह हमारे लिए काफी घातक होगा।

नया सेनापति ऐसा होना चाहिए जो बिना डरे सत्य को सामने रखे और झूठी वाहवाही के लिए हमें भ्रमित न करे।

राजा जयवर्धन के सलाहकार चिरंजीव ने शांतिपूर्वक राजा की पूर्ण बात सुनी और कहा कि राजन आप चिंता न करें मेरे पास इस समस्या का हल है आप कल प्रातः जिनमें से सेनापति चुना जाना है उन सैनिकों को बुलवा लें। मैं एक परीक्षा द्वारा यह पता कर सकता हूँ कि कौन आपसे सत्य छुपा सकता है और कौन सत्य हर हाल में भी बतायेगा।

यह बोल कर सलाहकार चिरंजीव ने राजा से आज्ञा ली और चले गए राजा ने अपने एक संतरी को बोलकर जिनमें से सेनापति चुना जाना है उन सैनिकों को कल प्रातः महल में आने का बुलावा भिजवा दिया।

अगली प्रातः सभी 10 सैनिक जिनमें से सेनापति का चयन होना था, महल में आ गए राजा से आज्ञा लेकर सलाहकार चिरंजीव ने सभी 10 सैनिकों को एक-एक गमला दिया और कहा कि इन सभी गमलों में एक जैसे गुलाब के बीज डाले गए हैं और सभी सैनिक इसे अपने घर ले जाएँ और 3 महीने तक इसकी सेवा करें ठीक 3 महीने बाद राजा स्वयं इन पौधों की जाँच करेंगे और जिसके पौधे में कमी पायी जाएगी उसे दंड मिलेगा।

यह सुन सभी अपना-अपना गमला लेकर राजा की आज्ञा पर वहां से चले गए। सबके जाने के बाद राजा जयवर्धन ने अपने सलाहकार चिरंजीव से पूछा कि यह गमला और फूल हमारी सेनापति ढूढ़ने में भला सहायता कैसे कर सकता है?

इस पर चिरंजीव ने जवाब दिया कि आप चिंता न करें राजन यह गमला और फूल अवश्य ही हमारी सहायता करेगा, केवल आप 3 माह का इंतजार करें।

तीन माह बीतने के पश्चात सभी 10 सैनिक अपना-अपना गमला लेकर महल में पहुंचे। राजा जयवर्धन और चिरंजीव ने देखा की सभी गमलों में अलग-अलग रंग के गुलाब के फूल उगें हैं किसे में लाल, किसी में सफ़ेद तो किसी में पिले गुलाब हैं। यह देख राजा ने सलाहकार चिरंजीव से पूछा कि यह कैसे संभव है आपने तो कहा था सब गमलों में एक ही रंग के गुलाब हैं।

और तभी राजा की नजर एक ऐसे गमले पर भी पड़ी जिसमें कोई पौधा नहीं ऊगा हुआ था। इस पर राजा ने उस सैनिक जिसके गमले में कोई पौधा नहीं ऊगा था उससे पूछा कि क्या तुमने अपने पौधे की देख-भाल अच्छे से नहीं की ? क्या तुम्हारे लिए राजशी आदेश का कोई महत्व नहीं है ?

इस पर उस सैनिक ने जवाब दिया कि क्षमा करें राजन ! मैंने अपनी सम्पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से इस पौधे की सेवा की है, समय पर पानी और खाद भी डाला है लेकिन फिर भी इस गमले से कोई पौधा नहीं ऊगा है।

यह सुन राजा ने सलाहकार चिरंजीव की तरफ देखा और पूछा कि क्या यह संभव है एक ही तरह के बीजों से अन्य के पौधे उगे लेकिन इसके नहीं ? पर हम तो यह देख के भी चकित हैं कि एक ही तरह के बीज से अलग-अलग रंग के पुष्प कैसे उग सकते हैं ? कृपया इस बात को स्पष्ट करो चिरंजीव।

चिरंजीव ने कहा कि राजन जिस गमले में पौधा नहीं ऊगा है केवल वही सैनिक सच्चा है और बाकि सब झूठे हैं और हमें भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं।

यह सुन सभी चौंक गए, चोंकते हुए राजा ने कहा कि आप कहना क्या चाहते हो स्पष्ट रूप से कहो।

चिरंजीव ने कहा कि राजन सत्य तो यह है कि मैंने किसी भी गमले में कोई पुष्प का बीज डाला ही नहीं था। जब कुछ दिन तक पौधा नहीं ऊगा तो इन्होने ही दंड के भय के कारण खुद ही इन गमलों में बीज डालें हैं और केवल वही व्यक्ति सत्य बोल रहा है जिसके गमले में से कोई पौधा नहीं ऊगा है क्योंकि उसे आपके दंड का भय नहीं है क्योंकि वह सत्य बोल रहा है और ईमानदार है।

और इसलिए राजन केवल यही व्यक्ति हमारे राज्य का भावी सेनापति बनने के लायक है। राजा उस सैनिक की ईमानदारी देख काफी प्रसन्न हुए और उसे ही अगला सेनापति नियुक्त किया और बाकि सभी झूठ बोल रहे सैनिकों को अपनी सेना से निकाल दिया और दण्डित किया।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि स्थिति कितनी ही कठिन या भयावहः क्यों न हो लेकिन हमें कभी भी अपनी सत्यता और ईमानदारी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि अंततोगत्वा ईमानदारी और सच्चाई की ही जीत होती है।

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